रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। खासतौर से बच्चों और किशोरों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर तो बुरा असर पड़ रहा है। घरों में बंद रहने के कारण ज्यादातर बच्चे मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि कोविड-19 आसमान से गिरी बिजली की तरह हर उम्र के लोगों के लिए एक चुनौतीपूर्ण घटना बन गई है। इस वक्त हर किसी को जहां संक्रमण लगने का भय बना हुआ है, वहीं सुरक्षित दूरी, पूर्णबंदी जैसे उपायों के चलते इस विषाणु के विरुद्ध संघर्ष में अनिश्चितता के साथ-साथ मानसिक कष्ट भी बढ़ गया है। मानसिक संकट को शब्दों में समझा पाना कठिन होता है, परंतु यह भय, चिंता, दुख, असुरक्षा जैसी भावना ही होती है जो कि अचानक आपको परास्त कर सकती है। एक पल जब आपके विचार आप पर हावी होने लगते हैं तो आप तेज धूप में अंधेरा महसूस करने लगते हैं। अनिश्चितता और भावनात्मक कमजोरी की भावना के साथ हताशा, निराशा की भावना आपके शरीर और मन को बर्बाद करने लगती है।
कोविड-19 के कारण आया यह भावनात्मक संकट पहले से ही कमजोर बच्चों और किशोरों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण रहा है। किशोरावस्था में गरीबी, दुर्व्यवहार या हिंसा के कारण कई शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक बदलाव आते हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की वर्ष 2017 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में दस से तेरह फीसद बच्चे और किशोर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से जूझ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में मानसिक रूप से प्रभावित होने वाले बच्चों की संख्या में भारी वृद्धि की आशंका है।
कोरोना महामारी के कारण छात्रों में चिड़चिड़ापन, घबराहट और बेचैनी बढ़ गई है, जबकि वे दूरस्थ शिक्षा के नए सामान्य का पालन कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक विश्व के लगभग बीस फीसद किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य या व्यवहार संबंधी समस्याएं देखने को मिल रही हैं। पंद्र्रह से उन्नीस वर्ष के आयु वर्ग के लोगों के लिए अवसाद विश्व में बीमारी का सबसे बड़ा बोझ बन गया है और पंद्रह से पैंतीस वर्ष की आयु के नौजवानों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर चिंता का विषय बन गई है। इस उभरते संकट की कोई सीमा नहीं है।
आज सबसे बड़ी जरूरत मानसिक कुशलता की गंभीरता को समझने की है। मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली परस्पर जुड़ी हुई शक्ति के रूप में है जो अन्य भागों के कार्य को भी प्रभावित करती है। इसलिए सही समय पर मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान न देने से यह खतरा वयस्कता तक बढ़ सकता है और इससे शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आज देखने में आ रहा है कि पूर्णबंदी के दौरान घरों में कैद रहने के कारण ज्यादातर बच्चों में अवसाद के लक्षण पैदा हो गए। बाहर निकलने, दोस्तों से मेल-मुलाकात करने, खेलने-कूदने जैसी सारी गतिविधियों के बंद हो जाने से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है।
प्रधानमंत्री ने परीक्षा पर चर्चा 2.0 में इस बात का उल्लेख किया था कि ‘अवसाद और खराब मानसिक स्वास्थ्य चिंता का बड़ा कारण हैं। हालांकि इनसे संबंधित पहलुओं को हल किया जा सकता है। शुरुआती लक्षणों पर ध्यान दें, चर्चा करें, समर्थन दें और यदि आवश्यक हो, तो परामर्शदाता से मिलने में संकोच न करें। इसी भावना से शिक्षा मंत्रालय ने वर्षों के दौरान अपने प्रयासों में विस्तार किया है। हमारे विद्यार्थियों की शैक्षिक सफलता और खुशहाली हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता रही है। वर्षों के दौरान विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए हैं। मानसिक कुशलता की आधारशिला रखने के लिए सभी स्कूलों और कॉलेजों में परामर्शदाता का होना आवश्यक है, जिसके द्वारा प्रत्येक स्कूल में सीबीएसई संबद्धता उपनियम का आदेश दिया जाता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा-निर्देशों, 2015 के अनुसार सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में ‘छात्र परामर्श प्रणाली’ का बंदोबस्त होना चाहिए।
बहरहाल, कोरोना महामारी के कारण पूर्णबंदी के चलते विद्यार्थियों के लिए दूरस्थ शिक्षा का विस्तार किया गया है। मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त बनाने के लिए भी परिवर्तन की आवश्यकता है, ताकि अनिश्चितता के वातावरण में भी विद्यार्थियों को पर्याप्त मार्गदर्शन और परामर्श दिया जा सके। इसके लिए शिक्षा मंत्रालय ने आॅनलाइन अध्ययन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं तनाव को दूर करने के तरीके बताए हैं। इसी तरह नेशनल स्कूल आॅफ ओपन स्कूलिंग (एनआइओएस) ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों योग, ध्यान, नृत्य, कला, चित्रकला और संगीत की कक्षाओं का आयोजन किया। इसके साथ ही शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘निष्ठा’ द्वारा शिक्षकों को आनलाइन मॉड्यूल के माध्यम से मानसिक कुशलता के मुद्दों से निपटने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इसके अलावा उच्च शिक्षा संस्थानों में भी अध्ययनरत छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा रहा है।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) ने बड़ी संख्या में संकाय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए और दस हजार से ज्यादा संकायों को प्रशिक्षित किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपील जारी कर मानसिक स्वास्थ्य, मनो-सामाजिक चिंताओं और परिसर में हर किसी की भलाई से संबंधित सूचनाएं और परामर्श जारी किए हैं। हालांकि समय चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन प्रयासों में और अधिक वृद्धि हुई है। मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए हेल्पलाइन की स्थापना की गई है, साथ ही जरूरतमंद छात्रों की पहचान और तत्काल आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए कोविड-19 सहायता समूहों की स्थापना की गई है।
ये प्रयास यहीं समाप्त नहीं हो जाते हैं। वर्ष 2020 के विश्व मानसिक स्वास्थ्य के केंद्रीय विषय के साथ शिक्षा मंत्रालय मानसिक स्वास्थ्य को एक मानवाधिकार के रूप में स्थापित करता है। शिक्षा मंत्रालय ने इस बात पर बल दिया है कि सबको मानसिक स्वास्थ्य उपलब्ध होना चाहिए। सुविधाओं तक अधिक व्यापक पहुंच के लिए अधिक निवेश की आवश्यकता है। केंद्रीय वित्त मंत्री ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत छात्रों, उनके परिवारों के सदस्यों और अध्यापकों की मानसिक कुशलता के लिए मनोदर्पण की घोषणा की थी। शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और मनो-सामाजिक मुद्दों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों के साथ एक कार्यदल का गठन किया गया था।
पर्याप्त मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के साथ-साथ समूह मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों और छात्रों की चिंताओं पर निगरानी रखने और उन्हें पूरा करने के लिए उत्तरदायी होगा। परामर्श सेवाओं, आॅनलाइन संसाधनों और हेल्पलाइन, एक वेबसाइट और टोल फ्री नंबर के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक पहलुओं को संबोधित करने के लिए सहायता सक्षम की जाएगी। इस पहल में अनेक घटक शामिल हैं, जैसे कि विद्यार्थियों, अध्यापकों, विद्यालय प्रणालियों और विश्वविद्यालयों के संकाय के लिए सलाहकारी दिशा-निर्देशों का निर्माण, शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर वेब पेज का सृजन, जिसमें सलाहकार, व्यावहारिक युक्तियां, पोस्टर, वीडियो, मनोवैज्ञानिक सहायता और आनलाइन पूछताछ प्रणाली व राष्ट्रीय स्तर के डाटाबेस शामिल होंगे।
हमें यह महसूस करना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य सर्वांगीण विकास के लिए एक अनिवार्य घटक है। अब से शिक्षा मंत्रालय यह सुनिश्चित करेगा कि सक्रिय और निवारक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मुख्यधारा में सीखने की प्रक्रिया के साथ समन्वित किया जाए। सरकार का संकल्प है कि देश का हर बच्चा मानसिक रूप से एकदम स्वस्थ हो और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ हर नागरिक को मिले। इसलिए हमें स्वस्थ और समृद्ध जीवन-यापन के लिए एक-दूसरे तथा अन्य व्यक्तियों के साथ संवाद करना और अपनी भावनाएं व्यक्त करना चाहिए।
(लेखक केंद्रीय शिक्षा मंत्री हैं)