शांति की राह


अफगानिस्तान में स्थायी युद्ध विराम और दीर्घकालिक शांति कायम करने के लिए चल रही वार्ता इस समूचे एशियाई क्षेत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण पहल है। खासतौर पर भारत की इसमें दिलचस्पी इसलिए भी है कि अफगानिस्तान न केवल भौगोलिक अवस्थिति की वजह से देश की सुरक्षा के लिए अहम है, बल्कि वहां की विकास गतिविधियों में भी भारत बड़ी भागीदारी निभा रहा है। यों युद्ध और टकराव की स्थिति को पूरी तरह खत्म करने के लिए अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच होने वाली बातचीत में भारत पहले से ही सक्रिय है, लेकिन इसी मसले पर अफगान शीर्ष शांति वार्ताकार के साथ एक प्रतिनिधिमंडल ने समर्थन को पुख्ता आधार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।


इसके बाद गुरुवार को प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत अफगानिस्तान में दीर्घकालिक शांति और समृद्धि को लेकर प्रतिबद्ध है और वहां चल रहे स्थायी युद्धविराम के प्रयासों का स्वागत करता है। उन्होंने भारत-अफगानिस्तान ऐतिहासिक संबंधों को आगे और मजबूती देने की भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को दोहराया। जाहिर है, अफगानिस्तान में चल रही शांति प्रक्रिया में सहयोग करने के लिहाज से भारत एक अहम भागीदार है और यह एक तरह से इस समूचे इलाके के लिए महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है।


दरअसल, पिछले महीने कतर की राजधानी दोहा में आयोजित बैठक में अफगानिस्तान में लंबे संघर्ष के बाद विभिन्न विरोधी गुटों ने बातचीत शुरू की थी। इस बातचीत में उम्मीद यही की गई कि उन्नीस साल बाद अमेरिका और नाटो सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी का रास्ता साफ होगा। शांति की राह में बढ़े हर कदम लंबे समय से युद्ध में पिस रहे अफगानिस्तान के लिए एक जरूरत भी है। लेकिन शांति और इसके बाद वहां राजनीतिक स्थिरता और पुनर्निर्माण के लिए भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत होगी।


इस लिहाज से देखें तो भारत अफगानिस्तान में एक बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। न केवल कूटनीतिक स्तर पर वहां चल रही शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में भारत समर्थन और सहयोग कर रहा है, बल्कि वहां की विकास परियोजनाओं को लेकर भी प्रतिबद्ध है। मसलन, अफगानिस्तान के इकतीस प्रांतों में एक सौ सोलह उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर भी भारत काम कर रहा है। इन परियोजनाओं पर 2017 में ही सहमति बनी थी, जिसके अंतर्गत भारत अफगानिस्तान में पानी, कृषि, सिंचाई, नवीकरणीय ऊर्जा, सूक्ष्म जल विद्युत जैसी परियोजनाओं पर बड़ी रकम खर्च कर रहा है।


जाहिर है, भारत के लिए भी अफगानिस्तान का पुनर्निर्माण महत्त्व रखता है। लेकिन इससे इतर भारत की एक बड़ी अपेक्षा यह है कि अफगानिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी भी हाल में भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा। इस लिहाज से देखें तो भारत को इसके लिए अफगानिस्तान के दोनों विरोधी पक्षों के साथ कूटनीतिक संबंध को बेहतर रखने की जरूरत महसूस हो रही है। यह किसी से छिपा नहीं है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के इलाकों में अपनी गतिविधियां चलाने वाले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन भारत के लिए कैसी जटिल समस्या खड़ी कर चुके हैं।


ऐसे में भारत की कोशिश यह है कि इन आतंकी संगठनों पर काबू करने और उन्हें कोई मदद नहीं देने के लिए वह अफगानिस्तान शांति वार्ता में शामिल सभी पक्षों को तैयार कर सके। शायद इसी वजह से भारत यह ध्यान रखे जाने की बात करता है कि इस शांति प्रक्रिया में कहीं ऐसा स्थान खाली नहीं रह जाए, जिसे आतंकवादी और उनके छद्म सहयोगी भर दें। यह एक जरूरी पहलू है, क्योंकि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता को गति तभी मिल सकेगी, जब इस मसले लेकर अतिरिक्त सावधानी बरती जाए।